खौफ़नाक प्रेत की कहानी 2022। Horror Pret Atma ki Kahani in Hindi

खौफ़नाक प्रेत की कहानी। Horror Pret ki Kahani in Hindi
प्रेत की कहानी। Pret ki Kahani

नमस्कार दोस्तो , स्वागत है आप्का नई प्रेत आत्मा की कहानी मे । आज ह्म Pret ki Kahani in Hindi बतानॆ ज रहे है | अगर आपको एसी हि और देखनी है , तो हमारी वेबसाइत् की अन्य रहस्यमयी कहानिया पोस्त जरुर देखिएगा आपको निस्चित हि पसन्द आयेगा।

इस Pret ki Kahani in Hindi लेख में चित्रित कहानी, सभी नाम, पात्र और घटनाएं काल्पनिक (may be) हैं। वास्तविक व्यक्तियों (जीवित या मृत), स्थानों, इमारतों और उत्पादों के साथ कोई पहचान का इरादा नहीं है या अनुमान लगाया जाना चाहिए। 

प्रेत आत्मा की कहानी (Pret Atma ki Kahani)

प्रेतनी की कहानी — मध्य जुलाई का समय था और रात के करीब 11 बज रहे थे। रात की कालिमा को बादलों की घटा ने और भी भयानक रूप से काली-कलूटी बना दिया था। खैर इस भयावह, सन्नाटेदार अँधियारी रात की परवाह न करते हुए गुगली-राधेनगर एक्सप्रेस अपनी तेज रफ्तार से अपने गंतव्य की ओर दौड़ते चली जा रही थी।

चंदू अपनी सीट पर गहरी निद्रा में चला गया था पर पास वाले सामने की सीट पर सोए हुए बुजुर्ग करवटें बदल रहे थे। उनके करवटें बदलने का कारण यह था कि उन्हें अगले स्टेशन पर उतरना था जो लगभग आधे-पौन घंटे में आनेवाला था। ठीक 11 बजकर 40 मिनट पर चों-चों करते हुए ट्रेन रुकी। बुजुर्ग ने तेजी से चंदू को हिलाकर जगाया और कहा कि बेटा मेरा स्टेशन आ गया है, जरा मेरा सामान उतरवाने में मेरी मदद कर दे।

कैसे हुई शुरुवात ?

चंदू आँख मलते हुए एवं अधखुले मुँह से जम्हाई लेते हुए उठ बैठा और उस बुजुर्ग के सीट के नीचे से उनकी अटैची एवं एक बड़े बैग को निकाला। फिर चंदू ने उस बुजुर्ग के सामान को ट्रेन से नीचे उतारा। बुजुर्ग ने चंदू को प्रशंसनीय दृष्टि से देखने के बजाय थोड़े उदास मन से देखा और फुसफुसाकर बोला, “बेटा जरा सावधानी बरतना क्योंकि मेरी सीट अभिशापित है। प्रेत आत्मा की कहानी। प्रेत की कहानी।

लगभग 12 बजने को हैं, अच्छा होगा कि अपने स्टेशन पर उतरने तक तूँ जगा ही रह, वैसे भी 3-4 घंटे में तेरा स्टेशन भी आ ही जाएगा।” चंदू कुछ समझ नहीं सका पर चेहरे पर प्रसन्नता लाते हुए उस बुजुर्ग व्यक्ति को बाय-बाय किया और फिर अपनी सीट पर आकर बैठ गया और उस बुजुर्ग की कही हुई बात पर अनमने मन से विचार करने लगा।

अब तो वैसे भी चंदू की नींद गायब हो चुकी थी और बार-बार उसके दिमाग में एक ही बात कौंध रही थी कि उस बुजुर्ग ने ऐसा क्यों कहा कि अपना स्टेशन आने तक जगा ही रह। खैर अब ट्रेन भी हार्न दे चुकी थी और धीरे-धीरे अपना स्पीड पकड़ना शुरू कर दी थी और इसी समय घनघोर घटा से बड़ी-बड़ी बूँदें निकलकर ट्रेन की छत को भिगोना शुरू कर दी थीं।

5 मिनट भी नहीं बिता होगा कि ट्रेन भी अपनी पूरी स्पीड में आ गई और बारिश भी। जी हाँ, हल्की हवा के साथ जोरदार, घर्रघराहट के साथ बारिश जिससे हल्की हवा भी सांय-सांय करने लगी थी। चंदू के आस-पास की सीटें लगभग खाली ही थीं, क्योंकि उसके डब्बे में उस बुजुर्ग के सिवा कोई और था ही नहीं और वे बुजुर्ग भी चंदू को थोड़ी दिमाग पर जोर डालनेवाली बात बताकर पिछले स्टेशन पर उतर चुके थे।

बाकी के सभी यात्री तो पहले के ही स्टेशनों पर उतर चुके थे। खैर, चंदू डरनेवालों में से नहीं था। उसने सोचा कि लगभग 3-4 बजे तक उसका स्टेशन आ ही जाएगा तो क्यों नहीं जगकर ही यह समय काट लिया जाए। उसने बुजर्ग के उतरने के समय जलाई हुई बत्तियों को वैसे ही जलने दिया था पर अब मात्र एक बत्ती को छोड़कर बाकी बत्तियों को बुझा दिया तथा सीट पर ऐसे लेटा कि उसका मुँह सामने की सीट की ओर हो और आँखें बंदकर कुछ गुनगुनाने की कोशिश करने लगा।

प्रेत आत्मा की कहानी
प्रेत आत्मा की कहानी

ट्रेन अपने प्रियतम से मिलने को आतुर किसी मदमस्त नवयौवना की तरह बारिश की परवाह न करते हुए, सरसराते हुए, तेज गति से लोहे की पटरियों को बेरहमी से कुचलते हुए दौड़ी चली जा रही थी। अचानक तेज बिजली कौंधी और डिब्बे की खिड़की में लगे कांच को पार करते हुए डिब्बे में कुछ पल के लिए ऊँजियार कर रफूचक्कर हो गई

आखिर कोन थी वो लड्की?

तभी अचानक हड़बड़ाकर चंदू उठकर अपनी सीट पर बैठ गया। उसे ऐसा लगा कि कोई व्यक्ति तेज कदमों से उस डब्बे में आया हो। अरे यह क्या, वह कुछ समझे उससे पहले ही एक नवयुवती एक अटैची लिए धड़ाम से आकर उसके सामने वाली सीट पर बैठ गई।

मंद प्रकाश में वह बहुत ही खूबसूरत लग रही थी पर साथ ही वह पूरी तरह से भींगी हुई थी और उसके बालों की लटों से पानी भी टपक रहा था। चंदू कुछ समझे, कुछ बोले उससे पहले ही उस नवयौवना ने अपनी अटैची खोली और उसमें से तौलिए को निकालकर अपने सर को पोंछने लगी।

अपने बालों में तौलिए को फिराते हुए मंद प्रकाश में उसका गुलाबी चेहरा और भी खूबसूरत लग रहा था। चंदू थोड़ा सकपका गया जब उसे उस बुजुर्ग की बात याद आई और साथ ही उसके दिमाग में यह भी बात कौंधी की अचानक इतनी तेज बारिश में, इतनी तेज रफ्तार से दौड़ती ट्रेन में यह बला (बाला) चढ़ी कैसे? वह बहुत ही घबरा गया क्योंकि ट्रेन तो रूकी थी नहीं फिर यह युवती यहाँ कैसे? प्रेत आत्मा की कहानी।

अचानक उसके दिमाग से आवाज आई कि हो सकता है कि पिछले स्टेशन पर दूसरे डिब्बे में चढ़ गई हो और अब यहाँ पहुँची हो पर फिर एक शंका उत्पन्न हुई, अगर किसी पिछले डब्बे में चढ़ी भी हो तो बारिश तो ट्रेन के चलने के साथ शुरू हुई थी तो यह भीगी कैसे? और यह भीगी भी इस तरह से है जैसे अभी-अभी इसी बरसात में भींगकर आई हो।

चंदू का दिमाग अब काम करना बंद कर दिया था और उसका पूरा शरीर पसीने से नहाना शुरू कर दिया था। पसीने की कुछ बूँदें तो उसके ललाट पर अपना घर भी बना ली थीं। वह गुमसुम मन से, डरे-सहमे, बिना कुछ बोले अपनी सीट पर जड़वत बना रहा।

5 मिनट तक की चुप्पी के बाद अचानक उस नवयुवती ने मुस्कुराते हुए हाथ मिलाने के अंदाज में अपना हाथ चंदू की तरफ बढ़ाया और चंदू अपना हाथ बढ़ाए इससे पहले ही वह नवयुवती बोल पड़ी, “मेरा नाम चंदा है और मैं अपने मौसी के घर जा रही हूँ।” चंदू भी हकलाकर बोल पड़ा, “मैं चंदू।”

बस इससे अधिक वह कुछ बोल न सका। इसके बाद तो वह नवयुवती इस तरह से बोलना शुरू कर दी जैसे कोई ऐसी समाचार-वाचिका हो जिसे 10 मिनट में बिना ब्रेक के हजार समाचार सुनाने हों। चंदू तो बस और बस थूक घोंटे हुए बैठा रहा और डरे-सहमे अपने स्टेशन का बेसब्री से इंतजार करता रहा।

अचानक पता नहीं क्या हुआ कि तेज चोंइयाने के साथ ही ट्रेन अपनी जगह पर खड़ी हो गई। शायद कोई बहुत ही छोटा स्टेशन था। अभी चंदू कुछ समझे तभी उस स्टेशन पर लगे माइक उस बारिश में घोंघिया उठे। किसी मरदानी आवाज में घोषणा की जा रही थी कि तकनीकी खराबी के चलते गुगली-राधेनगर एक्सप्रेस अभी आगे नहीं जा सकती।

इस तकनीकी खराबी को दूर करने में घंटों लग सकते हैं, अस्तु सभी यात्री सहयोग करें। चंदू के लिए यह एक और नई मुसीबत थी, अब तो उसका दिमाग पूरी तरह से चकरा गया, करे तो क्या करे? खैर उसने घड़ी देखी, उसकी घड़ी उस समय रात के 2 बजा रही थी। मन को तसल्ली दिया कि कोई बात नहीं, 2-3 घंटे में वैसे भी सुबह हो जाएगी।

चन्दु लड्की के साथ कहा गया?

अचानक उसके सामने की सीट पर करवटें बदलती वह नवयुवती फिर बोल पड़ी। लगता है, कोई बड़ी खराबी हो गई है। खैर अगर आप चाहें तो मेरे साथ नीचे उतर सकते हैं। इस स्टेशन के पास ही मेरे एक रिस्तेदार रहते हैं, हमलोग उनके घर पर जा सकते हैं और सुबह-सुबह फिर कोई दूसरी ट्रेन पकड़कर अपने-अपने गंतव्य की ओर जा सकते हैं? चंदू कुछ बोल न सका पर पता नहीं क्यों उस नवयुवती के पीछे-पीछे अपना सामान लिए उतर पड़ा।

तेज बारिश में अपने तेज कदमों से छप-छप करती हुई स्टेशन के बाहर जाती हुई वह नवयुवती और बेसुध-सा उसके पीछे बेमन से घसीटकर चलता हुआ चंदू। लगभग 5-7 मिनट चलने के बाद उस नवयुवती ने एक घर के बाहर लगी घंटी बजाई। दरवाजा खुला और वह घर के अंदर तथा पीछे-पीछे चंदू भी। घर के अंदर सिर्फ और सिर्फ एक ही औरत थी पर चंदू उसको भी ठीक से देख नहीं पाया था।

खैर घर के अंदर पहुँचते ही साथ आई नवयुवती चंदा ने एक तौलिया लाकर चंदू को दिया तथा साथ ही कुछ अच्छे रात्रिकालीन, शयनकालीन महँगे पहनावे तथा साथ ही हौले से मुस्कुराते हुए बोली कि आप आराम से अपने कपड़े बदल लो तब तक मैं चाय बनाकर लाती हूँ। अब चंदू कुछ सहज महसूस कर रहा था पर डरा हुआ तो अभी भी था।

उसने धीरे से बोला कि चाय की आवश्यकता तो नहीं लग रही पर पता नहीं फिर क्या सोचकर बोला, अच्छा, थोड़ा चाय पिलवा ही दीजिए। लगभग 10 मिनट भी नहीं बीते होंगे कि वह नवयुवती (चंदा) शयनकालीन खूबसूरत, मादक पोशाक में बिखरे बालों के साथ दोनों हाथों में चाय की दो प्याली लिए हुए मादकताभरी चाल के साथ उस कमरे में दाखिल हुई और मुस्कुराते हुए एक प्याली चंदू की तरफ बढ़ा दी। प्रेत आत्मा की कहानी

कंपकंपाते हाथों को संभालते हुए अपने दाएँ हाथ को बढ़ाकर चंदू ने कैसे भी प्याली ले ली और उसे आहिस्ते से होंठ से लगाकर चाय की चुस्की लेने की कोशिश करने लगा। अभी चंदू चाय की प्याली को पूरी तरह से खत्म भी नहीं किया था कि उसे एक बहुत ही अजीब व भयानक चीज देखने को मिली।

चन्दु ने शीशे मे क्या देखा?

वह जिस कमरे में था उसमें एक बड़ा-सा दर्पण लगा हुआ था। अचानक जब उसकी नजर उस दर्पण पर पड़ी तो क्या देखता है कि उस दर्पण में उसे एक अति भयानक एक आँखवाली प्रेतनी दिखाई दी, जिसके बाल पूरी तरह से बिखरे हुए और चेहरा बहुत ही विभत्स था।

वह तो पूरी तरह से घबड़ा गया क्योंकि उसके पास बैठकर चाय की चुस्की लेनेवाली चंदा तो बहुत ही मोहक थी, आकर्षक थी, खूबसूरत थी और उन दोनों के सिवा तो उस कमरे में कोई था भी नहीं। फिर क्या, उसने हनुमानजी का नाम लेते हुए अपने को संभाला और चाय को खत्म करके प्याली चंदा की ओर बढ़ा दिया।

चंदा ने अपनी प्याली पहले ही खाली कर दी थी, फिर वह हौले से उठी और उन दोनों प्यालियों को लेकर घर के अंदर चली गई। उसके जाते ही चंदू ने फिर उस दर्पण की ओर देखा पर अब उस दर्पण से उस भूतनी का चेहरा गायब था। अब तो चंदू को उस बुजुर्ग की बात फिर से याद आ गई और वह समझ गया कि वह बुजुर्ग क्या कहना चाहता था। प्रेत आत्मा की कहानी

खैर अब चंदू धीरज और विवेक से काम लेना शुरू कर दिया था। अब उसने बिना देर किए अपनी अटैची से तुलसी की माला निकालकर गले में पहन लिया तथा साथ ही दुर्गा सप्तशती की पुस्तक भी निकालकर अपने सिरहाने रख लिया।

अरे यह क्या, प्याली रखने के बाद जब चंदा आई तो थोड़ा सहमकर चंदू के पास न बैठकर थोड़ा दूर ही खड़ी रही और कातर दृष्टि से चंदू की तरफ देखते हुए उससे वह माला निकालकर दूर फेंकने का इशारा की। पर चंदू अब पूरी तरह सजग हो गया था।

उसने ऐसा नहीं किया और सिरहाने रखे दुर्गा सप्तशती को भी हाथ में उठा लिया। दुर्गा सप्तशती को हाथ में उठाते ही सुंदर, आकर्षण, मासूम सी लगनेवाली और मीठी मुस्कान वाली चंदा का चेहरा अचानक कठोर होने लगा और देखते ही देखते वह पूरी तरह से भयानक लगने लगी।

उसके बाल पूरी तरह से खुले हुए हवा में लहराने लगे और गरजने लगी तथा साथ ही अट्टहास करने लगी। वह चिल्लाने लगी कि तूँ बचकर नहीं जा सकता और मैं तेरा अंत कर दूँगी पर अब चंदू भी अपने को मजबूत करते हुए कुछ मंत्रों का उच्चारण करते तथा दुर्गा शप्तशती को हाथ में कस के दबाए उस कमरे से बाहर निकलने लगा, उधर वह चंदा अपने मायाजाल में चंदू को उलझाने का पूरा प्रयत्न करते हुए उसके पीछे-पीछे बाहर आ गई।

पर वह चाहकर भी चंदू का कुछ बिगाड़ नहीं पा रही थी और चंदू पर उसके भयानक, क्रूर रूप-रंग-अट्टहास का भी कोई असर होता नहीं दिख रहा था। अभी चंदू उस घर से निकलकर तेजी से कुछ ही दूर बढ़ा था कि अचानक वह बस्ती पता नहीं कहाँ गायब हो गई और साथ ही वह चंदा (प्रेतनी) भी।

अरे यह तो भयानक जंगल था, डरावना-घना जंगल। अब तो चंदू पूरी तरह से फँस चुका था क्योंकि उसे बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं सूझ रहा था। अभी चंदू कुछ और दिमाग दौड़ाए तभी उसके कानों में किसी बुजुर्ग की आवाज सुनाई दी, “बेटा! तूँ ठीक तो है?”

कोन था वह बुजुर्ग?

यह आवाज सुनते ही चंदू पीछे मुड़कर देखा तो एक संत जैसे बुजुर्ग उसे दिखाई दिए जो चलते हुए उसकी ओर ही आ रहे थे। चंदू फिर डर गया, क्योंकि उसे लगा कि कहीं यह भी चंदा का मायाजाल तो नहीं पर पता नहीं क्यों उस सज्जन के पास आते ही चंदू का डर रफूचक्कर हो गया और वह पूरी तरह से सहज महसूस करने लगा।

फिर क्या था, वह सज्जन किसी घटना की जिक्र करते हुए आगे-आगे और उनकी बातों को तन्मयता से सुनते हुए चंदू उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। दरअसल उस सज्जन ने चंदू को बताया कि वे पास की ही बस्ती में रहते हैं और चंदा उनकी ही बच्ची है, जिसको मरे 5 साल हो चुके हैं।

उन्होंने आगे भी उदास मन से कहना जारी रखा कि चंदा उस समय 17 साल की थी जब इसी ट्रेन से आ रही थी। उसके साथ 2-3 युवा भी थे। जब ट्रेन इस जंगल से होकर गुजरने को हुई तो उन लफंगों ने ट्रेन की चैनपोलिंग करके जबरजस्ती चंदा को लेकर इसी जंगल में आ गए थे।

फिर अपनी हवस मिटाने के बाद चंदा का कत्ल कर दिए थे। तभी से चंदा मरकर भी जीवित है और इस ट्रेन से आने वाले उस सीट पर बैठे (जिसपर तूँ बैठा था) किसी भी युवा को बहलाकर, अपने मायाजाल में उलझाकर यहाँ उतार लेती है और फिर उसको मार देती है।

उस सज्जन ने यह भी बताया कि दरअसल ट्रेन जहाँ रूकी थी वहाँ न कोई छोटा स्टेशन है और ना ही कोई घोषणा ही होती है पर रात के समय उस सीट पर बैठे किसी भी युवा को वह छोटा स्टेशन दिखाई देता है और साथ ही ट्रेन के वहाँ रूकते ही घोषणा भी सुनाई देती है, यह सारा काम चंदा द्वारा किया जाता है।

खैर उस सज्जन ने यह भी बताया कि अगले महीने वे गया जाकर कुछ अनुष्ठान करना चाहते हैं, पिंडदान करना चाहते हैं ताकि चंदा की भटकती आत्मा शांत हो जाए और किसी निर्दोष का अहित न करे। उन्होंने यह भी बताया कि वे अपने गाँव-घर में उसकी आत्मा की शांति के कई अनुष्ठान कर चुके हैं पर वह शांत होने का नाम नहीं ले रही है, इसलिए वे गया जाकर पिंडदान करना चाहते हैं।

खैर चंदू तो बच गया पर उन दुष्ट आताताइयों के कुकर्मों ने कितने ही मासूमों की बलि चढ़वा दी थी। सही करें, सत्कर्म करें। कुछ भी ऐसा ना करें जिससे आप को या समाज को किसी भी प्रकार की किसी विपत्ति का सामना करना पड़े।

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