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उसने कुछ खाने का सामान निकाला और मुझसे भी खाने हेतु आग्रह किया।किन्तु मैं बहुत ही सशंकित व्यक्तित्व का प्राणी.. ट्रेन मे किसी अजनबी के द्वारा दिए गए खाने को लेना असंभव था मेरे लिए।मैंने बहुत विनम्रता से उसके आग्रह को ठुकराया। वो भी कम उस्ताद नहीं था …कस कर हँसा और बोला- संशय कर रहे हैं मेरे ऊपर,अभी तो कुछ नहीं देखिये आगे क्या क्या होता है।
सहयात्री भी बर्थ पर लेट गया और कुछ देर मे उसके खर्राटे केबिन मे गूंजने लगे।मैं भी थोडा निश्चिन्त हुआ और बर्थ पर आँख बंद कर लेट गया। ट्रेन कभी धीमी होती कभी रफ़्तार पकड़ लेती लेकिन मेरे दिल ने अब तेज रफ़्तार ही पकड़ रखी थी…, भय और घबराहट के कारण लघुशंका की इच्छा अपने आप जीवित हो जाती है.