राजस्थान के बीहड़ों के बीच बसा काला डूंगर गाँव, जहाँ सूरज ढलने के बाद सन्नाटा पसर जाता था। लोग कहते थे कि वहाँ एक जिन्न रहता था, जिसे “अंधेरे का मालिक” कहा जाता था। उसके बारे में कई कहानियाँ प्रचलित थीं—कुछ लोगों का मानना था कि वह सोने की खोज में लोगों को मार देता था, तो कुछ कहते थे कि उसकी छाया पड़ते ही इंसान हमेशा के लिए पागल हो जाता था।
लेकिन यह सब सिर्फ़ दंतकथाएँ थीं… या फिर नहीं?

अंधेरे का मालिक
मुख्य पात्र
- आदित्य राठौड़ (28 साल) – एक इतिहासकार, जो भूतिया स्थानों पर रिसर्च करता था। तर्कशील और निडर।
- तृषा मेहता (26 साल) – आदित्य की मंगेतर और एक न्यूज़ रिपोर्टर। बहादुर, मगर अंदर से डरी हुई।
- विक्रम सिंह (32 साल) – स्थानीय गाइड, जिसने बचपन से ही जिन्न की कहानियाँ सुनी थीं।
- दादी जमुना (70 साल) – गाँव की सबसे बुज़ुर्ग महिला, जो जिन्न के बारे में सब कुछ जानती थी।
कहानी की शुरुआत
आदित्य और तृषा को जब काला डूंगर गाँव की रहस्यमयी कहानियाँ पता चलीं, तो वे वहाँ जाने का फैसला कर चुके थे। उनके साथ विक्रम भी था, जो उन्हें वहाँ की सच्चाई बताने वाला था।
गाँव पहुँचते ही माहौल अजीब लगा—हर घर की खिड़कियाँ और दरवाज़े सूरज ढलते ही बंद हो जाते थे। बच्चे बाहर खेलने नहीं आते, और हवा में एक अजीब-सा डर समाया हुआ था।
तभी, एक बूढ़ी औरत उनकी ओर बढ़ी—दादी जमुना।
“तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था,” उसने धीमी मगर कठोर आवाज़ में कहा।
“हम सिर्फ़ सच्चाई जानना चाहते हैं,” आदित्य ने उत्तर दिया।
दादी जमुना ने गहरी साँस ली और कहा, “अगर तुम जिन्न को देखने गए, तो वापस नहीं लौट पाओगे!”
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आतंक
आदित्य और तृषा ने तय किया कि वे गाँव से कुछ दूरी पर मौजूद शापित खंडहर में रात बिताएँगे—वही जगह जहाँ लोगों ने आख़िरी बार जिन्न को देखा था।
रात के ठीक बारह बजे, हवाओं में एक बदलाव महसूस हुआ। आसमान पर काले बादल घिर आए।
तभी विक्रम की आँखें फटी की फटी रह गईं।
“देखो… वहाँ!” उसने काँपते हुए कहा।
खंडहर के एक कोने में एक छाया खड़ी थी—लंबी, दुबली, मगर मानवीय नहीं। उसकी आँखें अंधेरे में लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं।
“यह जिन्न है!” तृषा ने साँस रोके हुए कहा।
छाया धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगी।
“भागो!” विक्रम ने चिल्लाया, मगर उनके पैरों ने जैसे ज़मीन पकड़ ली हो।
जिन्न का सच
अचानक, जिन्न की गुर्राहट हवा में गूँजने लगी।
“तुमने मेरी नींद ख़राब कर दी… अब तुम हमेशा के लिए यहीं रहोगे!”
आदित्य ने हिम्मत जुटाकर पूछा, “तुम कौन हो?”
जिन्न ने एक ठंडी हँसी हँसी और कहा, “मैं वह हूँ जिसे इंसानों ने लालच के लिए बाँध दिया था।”
आदित्य को अचानक अहसास हुआ कि जिन्न की कहानी कोई साधारण कहानी नहीं थी—यह गाँव के लोगों के पापों का नतीजा था।
सैकड़ों साल पहले, गाँव के राजा ने एक तांत्रिक की मदद से एक शक्तिशाली जिन्न को बाँध दिया था, ताकि वह उसके लिए सोना खोजे। लेकिन जिन्न ने बदले में गाँव को श्राप दे दिया—कोई भी जो उसकी क़ैद में आता, वापस नहीं लौटता।
आदित्य को याद आया कि दादी जमुना ने बताया था—“जिन्न को मुक्त किए बिना उससे बचा नहीं जा सकता!”
लेकिन अगर उन्हें जिन्न को मुक्त करना था, तो उसका क्रोध पूरे गाँव पर टूट सकता था।
तृषा ने कांपते हुए कहा, “अगर हम इसे अभी नहीं रोकेंगे, तो यह हमें नहीं छोड़ेगा!”
आदित्य ने ज़मीन पर पड़ा एक पुराना यंत्र-मंत्र लिखा तांत्रिक पत्थर उठाया और उस पर दादी जमुना का बताया मंत्र पढ़ने लगा।
“ॐ निलाय नमः… ॐ कालाय नमः…”
जिन्न ज़ोर से चिल्लाया।
उसका शरीर हिलने लगा, और वह धुएँ में बदलने लगा। उसकी आँखों में नाराज़गी और दर्द दोनों झलक रहे थे।
“तुमने मुझे मुक्त कर दिया… लेकिन यह गाँव अभी भी श्रापित रहेगा!”
और फिर… वह हवा में घुल गया।
आदित्य, तृषा और विक्रम वापस गाँव पहुँचे।
सुबह होते ही गाँव का माहौल बदला-बदला सा लगा—हवा अब पहले जैसी भारी नहीं थी, और सूरज की किरणें गाँव की दीवारों से टकरा रही थीं।
लेकिन दादी जमुना ने एक आख़िरी चेतावनी दी, “जिन्न चला गया, मगर उसकी छाया कभी नहीं जाती… अब तुम वापस लौट जाओ!”
आदित्य और तृषा ने गाँव छोड़ दिया, मगर रास्ते में उन्हें पीछे से किसी की धीमी हँसी सुनाई दी।
क्या जिन्न सच में चला गया था?
या फिर उसकी छाया अब भी अंधेरे में उनका पीछा कर रही थी?